ऐसा क्या है पूर्वांचल में ? जो बनारस में केंद्रीय मंत्रिमंडल के लोग विकास दिखाने- के लिए बनारस की गलियों में घूम रहे थे लगातार 10 दिनों से कुछ लोग प्रेस कॉन्फ्रेंस में तो कुछ जिलेबी खाने में और जो बच गए वो रैली आदि में ।

देश के प्रधानमंत्री जी को मुख्यमंत्री बनने की बेचैनी है या राज्यसभा में राजशाही चलाने की बेचैनी है , यह एक यक्ष प्रश्न है जनमानस के समक्ष ।।

उम्मीद है कि बनारस को क्वेटो के तर्ज पर एक बेहतर जगह बनाने वाले को बनारस की जनता अपने मत का प्रयोग कर के जबाब देगी ।। बहूत ज्यादे VIP का जमावड़ा वाराणसी के जनमानस के लिए जो मुसीबतें पैदा किया शायद ही वाराणसी के लोग भूल पाएंगे।। झूठ और फरेब की बुनियाद पर बनी ईमारत का जीवन दीर्घकालिक नहीं होता , यह बात श्री नरेंद्र मोदी को समझना चाहिए , चंद्रशेखर जी ने संसद के अंदर यह बात कही थी “अतिवाद , जातिवाद, संप्रदायवाद और परिवारवाद से सरकार तो बनाई कज्य सकती है परंतु देश नहीं “

भारत दुनिया का पहला ऐसा देश है जहाँ मुख्यमंत्री को हराने के लिए
प्रधानमंत्री तक सारा काम छोड़कर के बनारस में 3 दिन तक पाये गए ।।
संपूर्ण विश्व में भारत एक सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और यहाँ की चुनाव व्यवस्था निष्पक्ष रूप से चुनाव आयोग द्वारा कराई जाती रही है परन्तु इस बार जिस प्रकार से प्रसाशनिक व्यवस्था का खुला मजाक किया गया है वह बहुत ही चिंतनीय है , जिले जिले रोड शो हुए, और इसमे अनगिनत पुलिस वर्ग की तैनाती, पता नहीं कितने पैसे इसमें ख़र्च हुए शायद ही चुनाव आयोग इसका पता लगा पाये।।

टीवी पर दिन भर कोई ऐसा न्यूज़ चैनल नहीं जिसने लाइव रैली, रोड शो का प्रसारण किया ,लगभग सभी ने किया, देश के सभी बुद्धिजीवी इस प्रकरण को देश की एक प्रमुख पार्टी बीजेपी के साथ मिलीभगत के रूप में देख रहे है। लेकिन दुर्भाग्य से केवल चुनाव आयोग को यह दृष्टिबोध नहीं हो रहा ,ऎसी परिस्थिति में कहीं न कहीं चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर प्रश्न चिन्ह लगता नजर आ रहा है ।।

देश की जनता यह जानना चाहती है कि क्या चुनाव में किये गए खर्च एक एक विधानसभा में 28 लाख के अंदर ही हो गए, एक दिन के रोड शो पर अगर खर्चे देखे जाएँ तो तस्वीर आईने के तरह साफ हो जाएगी ।।

चुनाव के दरम्यान बढ़ते आर्थिक वर्चस्व ने देश के लोकतंत्र को एक ऐसे मुकाम पर खड़ा किया है जहाँ पर शून्यता के सिवा कुछ भी नहीं है ।।

विगत 30 दिनों से टीवी, इंटरनेट पर जिस प्रकार से बीजेपी और अन्य पार्टियों के प्रचार गूगल एडवर्ड के माध्यम से किया गया , यह भी एक विचारणीय प्रश्न है , उम्मीद है चुनाव आयोग इसके बिल को भी देखेगा ।।

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